वह तोडती पत्थर ।
देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर,
वह तोडती पत्थर ।
कोई न छायादार
पेड वह जिसके तले बैठी स्वीकार,
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन, प्रिय कर्म रत मन ।
गुरु हथौडा हाथ।
करती बार-बार प्रहार
सामने तरु मालिका, अट्टालिका प्राकार
चढ रही थी धूप,
गर्मियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप,
उठी झुलसाती हुई लू,
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गई,
प्राय: हुई दुपहर:-
वह तोडती पत्थर।
चढ रही थी धूप,
गर्मियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप,
उठी झुलसाती हुई लू,
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गई,
प्राय: हुई दुपहर:-
वह तोडती पत्थर।
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार,
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टी से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैं ने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -
"मैं तोड़ती पत्थर !"
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार,
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टी से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैं ने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -
"मैं तोड़ती पत्थर !"
प्र1: 'सीकर' शब्द से अभिप्राय है
(क) पसीना
(ख) बूँद
(ग) रक्त
(घ) पत्थर
प्र2: काव्यांश के आधार पर बताईये कि दोपहर का वातावरण कैसा था?
(क) हलकी हवा चल रही थी
(ख) आकाश में मेघ छाए थे
(ग) लू चल रही थी
(घ) धूप कम थी
प्र3: 'नत नयन, प्रिय कर्म रत मन' से अभिप्राय है
(क) झुके हुए सुन्दर नयन, कर्म में लीन
(ख) नयन सुन्दर होने के कारण झुक कर काम कर रही थी
(ग) नयन का झुकना स्वाभाविक है इसलिए काम कर रही थी
(घ) वह कामचोर थी
प्र4: भूमि जल रही थी
(क) रुई के समान
(ख) रह रह कर जल रही थी
(ग) तवे के समान
(घ) अँगीठी के समान
प्र5: 'दोपहर' का समास विग्रह है
(क) दो और पहर
(ख) दो है पहर जिसके
(ग) दो पहरों का समूह
(घ) दो है पहर जों
उत्तर:
1: (क) पसीना
2: (ग) लू चल रही थी
3: (क) झुके हुए सुन्दर नयन, कर्म में लीन
4: (क) रुई के समान
5: (ग) दो पहरों का समूह ( द्विगु समास)
(सीबीएसई 2010) दिए गए काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही विकल्प को चुनिए -
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
प्र 1: 'छा गया सहसा अँधेरा' पंक्ति का भाव है
(क) सहसा बादलों का छा जाना
(ख) सहसा धुल भरी आँधी चलना
(ग) सहसा जीवन में कष्टों का आगमन
(घ) सहसा बिजली का चले जाना
प्र2: रात आने पर कवि को लगा
(क) रात में रास्ता भटक जाने का डर
(ख) मुसीबतों का समाप्त न होने का डर
(ग) रात में अकेले होने का डर
(घ) निशा न समाप्त होने का डर
प्र3: उषा की मोहिनी मुस्कान सन्देश देती है
(क) सवेरा होने पर अँधेरा दूर हो जाता है
(ख) सुबह सबका मन मोह लेती है
(ग) सवेरा होने पर सभी काम में लग जाते हैं
(घ) दुःख के बाद सुख का आगमन होता है
प्र4: कवि घोंसले का पुनर्निर्माण चाहता है क्योंकि
(क) कवि घोंसला बनाने की कला जानता है
(ख) कवि घोंसला बना कर पक्षियों को आश्रय देना चाहता है
(ग) कवि आशावादी है
(घ) कवि चाहता है कि पक्षी घोंसला बनाये
प्र5: पद्यांश सन्देश देता है
(क) कष्टों से नहीं घबराना
(ख) दुखों का अंत जरूर होता है
(ग) जीवन में आशावादी होना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
1: (ग) सहसा जीवन में कष्टों का आगमन
2: (ख) मुसीबतों का समाप्त न होने का डर
3: (घ) दुःख के बाद सुख का आगमन होता है
4: (ग) कवि आशावादी है
5: (घ) उपर्युक्त सभी
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