पुस्तकें एवं कंप्यूटर - किसका वर्चस्व ?
श्रमार्जन जीवनपर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है । यह ज्ञान हम विभिन्न इन्द्रियों द्वारा भिन्न - भिन्न स्त्रोतों से प्राप्त करते हैं ।
परन्तु पुस्तकें प्राचीन कल से ज्ञान अर्जन का एक सार्थक साधन रही हैं । पुस्तकों द्वारा हम वह समय जो हमने देखा नहीं, सुना नहीं परन्तु उपरोक्त का सम्पूर्ण ज्ञान हम प्राप्त कर सकते हैं ।
जैसे - जैसे मनुष्य का बौद्धिक विकास हुआ वैसे -2 तकनीकी विकास ने करवट ली । और उसने सम्पूर्ण विश्व को एक मुट्ठी में सिकोड़ लिया । इसीका विश्वव्यापी उदहारण है - कम्प्यूटर । कंप्यूटर पर घर बैठे ही हमें विश्वदर्शन हो जाता है और इतना ही नहीं हमें विश्व की घटनायों से जोड़ भी सकता है ।
किताबें पड़ने से सोच विचार की क्षमता विकसित होती है । रचनात्मकता का विकास होता है । जितना गहन अध्धयन होगा उतना ही उसका असर व्यापक व् विस्तृत होगा । पुस्तकों द्वारा ध्यान केन्द्रित होने की क्षमता का विकास होता है । इतिहास साक्षी है विभिन्न पौराणिक स्त्रोत दस्तावेजों के रूप में हमारे सामने प्रतुस्त है । जिनको आधार रूप में रखकर ही आधुनिक विकास का रूप सामने प्रकट होता है । यदि पुस्तकों का प्रारंभिक रूप हमारे सामने होता ही नहीं तो आज विकास किस अवस्था में होता...? यदि पुस्तकों का प्रारंभिक रूप हमारे सामने होता ही नहीं तो आज विकास किस अवस्था में होता? यह विचारा जा सकता है । पुस्तकें पढने से एकाग्रता विकसित होती है, जिससे सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास संभव है । पढने की आदत या व्यवहार एवं सोच व्यक्तित्व को सकारात्मक दिशा प्रदान करती है । अध्ययन का सबसे सरल व सुगम साधन पुस्तकें ही है । इन्हें कहीं भी कभी भी उठाकर ले जाया जा सकता है और सदा के लिए स्मृति बनी रहती है ।
इसके लिए पुस्तकों से अच्छा कोई और साधन नहीं है ।
वहीँ कंप्यूटर एक बौद्धिक मशीन है । जो ज्ञान को संकुचित करता है एवं रचनात्मकता का हास करता है । ज्ञान का अथाह भंडार होने के कारण एकाग्रता व केन्द्रिता का अभाव आ जाता है ।
प्रत्येक ऊम्र का व्यक्ति अपनी रूचि व् अभिवृति के अनुसार इसका प्रयोग बिना भटके कर सकता है। यह जरूरत को पीछे हटाकर अंध मनोवृति को बढ़ता है ।
अंतत: पुस्तकों का वर्चस्व आज भी कायम है और आगे भी रहेगा ।
(contributed by Ms. Priyanka Sharma - Hindi Teacher)
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