एक फूल की चाह
1. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रशनों के लिए सही विकल्प चुनिए-
दंड भोगकर जब मैं छूटा,
पैर न उठते थे घर को;
पीछे ठेल रहा था कोई
भय–जर्जर तनु पंजर को।
पहले की–सी लेने मुझको
नहीं दौड़कर आई वह;
उलझी हुई खेल में ही हा !
अबकी दी न दिखाई वह।
उसे देखने मरघट को ही
गया दौड़ता हुआ वहाँ ;
मेरे परिचित बंधु प्रथम ही
फूँक चुके थे उसे जहाँ।
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी ,
हाय ! फूल–सी कोमल बच्ची
हुई राख की थी ढेरी !
पैर न उठते थे घर को;
पीछे ठेल रहा था कोई
भय–जर्जर तनु पंजर को।
पहले की–सी लेने मुझको
नहीं दौड़कर आई वह;
उलझी हुई खेल में ही हा !
अबकी दी न दिखाई वह।
उसे देखने मरघट को ही
गया दौड़ता हुआ वहाँ ;
मेरे परिचित बंधु प्रथम ही
फूँक चुके थे उसे जहाँ।
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी ,
हाय ! फूल–सी कोमल बच्ची
हुई राख की थी ढेरी !
प्र१: सुखिया के पिता को किस अपराध का दंड मिला था?
(क) प्रसाद लेने का
(ख) मंदिर न आने का
(ग) मंदिर की पवित्रता नष्ट करने का
(घ) धोखा देने का
प्र२: सुखिया के पिता के पैर घर की ओर क्यों नहीं उठ रहे थे?
(क) किसी अनहोनी की आशंका के फलस्वरूप
(ख) जेल से आने के कारण
(ग) वह जेल में असमर्थ था
(घ) घर नहीं जाना चाहता था
प्र३: सुखिया पिता को लेने बाहर क्यों नहीं आई?
(क) वह बीमार थी
(ख) उसकी मृत्यु हो चुकी थी
(ग) वह खेल रही थी
(घ) उसे पिता के आने का पता ही नहीं चला
प्र४: पिता को सुखिया किस रूप में मिली?
(क) जलती चिता के रूप में
(ख) मृत अवस्था के रूप में
(ग) राख की ढेरी के रूप में
(घ) फूल की ढेरी के रूप में
प्र५: 'एक फूल माँ का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा!' पंक्ति में पिता के कौन से भाव प्रकट हो रहे है?
(क) सुख और दुःख के मिले-जुले
(ख) कष्ट और बैचेनी के भाव
(ग) विवशता और शोक के भाव
(घ) डर और करुणा के भाव
उत्तर:
१: (ग) मंदिर की पवित्रता नष्ट करने का
२: (क) किसी अनहोनी की आशंका के फलस्वरूप
३: (ख) उसकी मृत्यु हो चुकी थी
४: (ग) राख की ढेरी के रूप में
५: (ग) विवशता और शोक के भाव
2. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रशनों के लिए सही विकल्प चुनिए-
देख रहा था – जो सुस्थिर हो नहीं बैठती थी क्षण भर,
हाय! बही चुपचाप पड़ी थी अटल शान्ति-सी धारण कर।
सुनना वही चाहता था मैं उसे स्वयं ही उकसा कर -
मुझको देवी के प्रसाद का एक फूल ही दो लाकर!
ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर मन्दिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे पाकर समुदित रवि-कर-जाल।
दीप-दूध से आमोदित था मन्दिर का आंगन सारा;
गूँज रही थी भीतर-बाहर मुखरित उत्सव की धारा।
हाय! बही चुपचाप पड़ी थी अटल शान्ति-सी धारण कर।
सुनना वही चाहता था मैं उसे स्वयं ही उकसा कर -
मुझको देवी के प्रसाद का एक फूल ही दो लाकर!
ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर मन्दिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे पाकर समुदित रवि-कर-जाल।
दीप-दूध से आमोदित था मन्दिर का आंगन सारा;
गूँज रही थी भीतर-बाहर मुखरित उत्सव की धारा।
प्र१: मंदिर कहाँ था?
(क) समुद्र के किनारे
(ख) पहाड़ की चोटी पर
(ग) गाँव के निचले हिस्से पर
(घ) शहर के बीच में
प्र२: मंदिर के स्वर्ण-कलश चमक रहे थे
(क) विध्युत प्रकाश से
(ख) चंद्रमा की किरणों से
(ग) सूर्य की किरणों से
(घ) चमकीले होने से
प्र३: 'अटल शान्ति-सी धारण कर' से कवि का तात्पर्य है
(क) खेलते हुए
(ख) चेतनाशून्य, निष्प्राण
(ग) चुपचाप होकर
(घ) सुन्दर वस्त्र धारण कर
प्र४: वह चुपचाप क्यों पड़ी है?
(क) प्रसन्नता के कारण
(ख) नाराज़ है
(ग) क्रोधित हो कर
(घ) बीमार है
प्र५: पिता पुत्री को उकसाकर क्या सुनना चाहता है?
(क) देवी माँ के प्रसाद के फूल की माँग
(ख) मिठाई की माँग
(ग) खिलौनों की माँग
(घ) साइकिल की माँग
उत्तर:
१: (ख) पहाड़ की चोटी पर
२: (ग) सूर्य की किरणों से
३: (ख) चेतनाशून्य, निष्प्राण
४: (घ) बीमार है
५: (क) देवी माँ के प्रसाद के फूल की माँग
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