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Friday, 16 December 2016

Class 7 - Hindi - नीलकंठ - प्रश्न - उत्तर (भाग -२ ) - (#CBSENotes)

नीलकंठ 

Class 7 - Hindi - नीलकंठ - प्रश्न - उत्तर (भाग -२  ) - (#CBSENotes)
नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो'  

प्रश्न - उत्तर (भाग -२  )

प्र.१  जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ?

उत्तर- जाली के  बड़े घर में मोर के बच्चों के पहुँचते ही वहाँ हलचल मच गई। अन्य जीवों को वैसा ही कौतूहल हुआ जैसा नववधू के आगमन पर परिवार के बाकी सदस्यों में होता है।  लक्का कबूतर नाचना छोड़ कर दौड़ पड़े और उनके चारों और घूम-घूमकर गुटरगूँ करने लगे।  बड़े खरगोश गंभीर भाव से कतार में बैठकर उनका परीक्षण करने लगे।  छोटे खरगोश उनके आसपास उछलकूद मचाने  लगे।  तोते उनका निरीक्षण एक आँख बंद करके करने लगे।


प्र.२: लेखिका को नीलकंठ की कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थी?

उत्तर- लेखिका को नीलकंठ का गर्दन ऊँची कर देखना, विशेष भंगिमा के साथ उसे नीची कर दाना चुगना और पानी पीना तथा गर्दन टेढ़ी कर शब्द सुनना आदि चेष्टाएँ बहुत भाती थी।  इनके अतिरिक्त पंखों को फैलाकर उसका नृत्य करना भी लेखिका को मोहित कर लेता था।




प्र. ३: ‘इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा’-वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?

उत्तर-  यह वाक्य नीलकंठ और राधा के प्रेम और आनंद भरे जीवन में कुब्जा के आगमन की ओर संकेत कर रहा है।  नीलकंठ और राधा ख़ुशी-ख़ुशी अपना वक्त गुजार रहे थे कि कुब्जा ने आकर उनके जीवन की सारी प्रसन्न्ता का अंत कर दिया।  वह उन दोनों को कभी साथ नहीं रहने देती थी।  राधा को नीलकंठ के साथ देखकर वह चोंच से मारने दौड़ती।  वह किसी अन्य जीव को भी नीलकंठ के पास नहीं जाने देती थी।  वह नीलकंठ का सान्निध्य चाहती थी और नीलकंठ उससे दूर भागता रहता था। कुब्जा ने राधा के अंडे भी तोड़ दिए। अंततः बेचारे नीलकंठ के जीवन का ही अंत हो गया। 


प्र.४:  नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया? इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- साँप ने शिशु खरगोश के शरीर का पिछला हिस्सा मुँह में दबा लिया था । खरगोश चींचीं कर रहा था। नीलकंठ दूर ऊपर झूले में सो रहा था।  खरगोश की आवाज सुनकर एक झटके में वह नीचे आ गया।  अपनी सहज-चेतना से ही वह समझ गया कि साँप के फन पर चोंच मारने से खरगोश घायल हो सकता है। इसलिए उसने साँप के फन के पास पंजों से दबाया और फिर चोंच से इतना मारा की वह अधमरा हो गया।  खरगोश उसके पंजे से छूट तो गया, पर निश्चेष्ट सा वहीं पड़ा रहा।  साँप का काम तमाम कर नीलकंठ खरगोश को  रात भर  अपने पंखों के नीचे रख उष्णता देता रहा । 
इस घटना से नीलकंठ के स्वभाव की कई विशेषताओं का पता चलता है। वह वीर और साहसी था। उसमें मानवीय भावनाएँ भी विद्यमान थीं।  वह अपने साथियों से  प्रेम करता था और उनके संरक्षक का किरदार निभा रहा था। 


प्र.५: नीलकंठ की नृत्य-भंगिमा का शब्दचित्र प्रस्तुत करें।

उत्तर- नीलकंठ अपने इंद्रधनुषी गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बना कर नाचता था। उसके नृत्य में एक सहजात लय-ताल रहता था| आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ, उसके घुमने में भी क्रम रहता था तथा वह बीच-बीच में एक निश्चित अंतराल पर थम-थम भी जाता था। तीव्र वर्षा होने पर उसके नृत्य की गति के साथ केका की ध्वनि भी तीव्र हो जाती थी।


प्र. ६: लेखिका ने मोर-मोरनी को सबसे पहले कहाँ रखा?

उत्तर- लेखिका ने मोर के दोनों बच्चों को लाकर अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में रखा था। उन्हें डर था कि कहीं उनकी पालतू बिल्ली चित्रा उन पर हमला न कर दे। वैसे वह चूहों को भी नहीं मारती थी। लेकिन अपनी मालकिन के कक्ष में दो अन्जान प्राणियों  को देख कर संभवतः वह क्रोधित हो जाती। इसलिए उन्हें चित्रा से बचाने के लिए लेखिका को कमरे का दरवाज़ा बंद रखना पड़ता था। 


प्र.७: नीलकंठ को ‘परफेक्ट जेंटिलमैन’ की उपाधि कैसे मिली?

उत्तर- नीलकंठ को पता था कि लेखिका को उसका नृत्य बहुत भाता है। इसलिए नीलकंठ प्रायः लेखिका को देखते ही अपने पंखों की छतरी फैलाकर नृत्य भंगिमा में खड़ा हो जाता था।  लेखिका के साथ अक्सर कोई न कोई देशी-विदेशी अतिथि होते थे।  वे नीलकंठ की इस मुद्रा को अपने प्रति व्यक्त सम्मान समझ कर आश्चर्यचकित होते थे।  कई विदेशी महिलाओं ने उसके इस गुण से अभिभूत हो उसे ‘परफेक्ट-जेंटिल मैन’ की उपाधि दे दी। 


प्र.८: वर्षा ऋतु में नीलकंठ और राधा के उमंग का वर्णन करें। 

उत्तर- वर्षा ऋतु में मेघों के छाने से पहले ही हवा की ठंडक से नीलकंठ और राधा को उनके आगमन का पूर्वानुमान हो जाता था।  फिर शुरू होती थी उनकी मंद केका की ध्वनि जो संभवत: बूंदों के धरती पर उतरने के लिए सीढ़ी का काम करती थी।  मेघ की गरज के साथ नीलकंठ का नृत्य आरंभ होता और धीरे-धीरे उसके नृत्य की गति तथा केका की ध्वनि बारिश के वेग के साथ तीव्र होती जाती थी। 





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