लोकोक्तियां (Proverbs)
लोगों द्वारा कही गई प्रसिद्ध बात कहावत बन जाती है | इन्हें लोकोक्ति भी कहते हैं|
इन का अर्थ शाब्दिक ना होकर और ही संकेत करता है| वास्तव में किसी मान्यता, आस्था या अनुभव आदि की अभिव्यक्ति होती है| मुहावरे का प्रयोग तो वाक्यांश के रूप में होता है, परंतु लोकोक्ति का प्रयोग वाक्य के अंत में स्वतंत्र रूप से होता है|
स्वतंत्र रूप में प्रयोग होने वाली और लोगों द्वारा कही गई बात लोकोक्ति कहलाती है|
कुछ लोकोक्तियों उनके अर्थ व वाक्य प्रयोग
१. अंत भला तो सब भला
अच्छे का परिणाम अच्छा होता है|
हरि ने अपने माता-पिता की बहुत सेवा की| अब उसका बेटा उसकी सेवा करता है| कहते हैं अंत भला तो सब भला|
२. अंधा क्या चाहे दो आंखें
बिना प्रयास के मनचाही वस्तु का मिल जाना|
वैभव के ऑफिस जाने के लिए गाड़ी आने लगी| इससे वह खुश है, अंधा क्या चाहे दो आंखें|
३. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता
अकेला आदमी बड़े काम नहीं कर सकता|
तुम साथ दो तो उसे हराया जा सकता है| तुम जानते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता|
४. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत
अवसर चूकने के बाद पछताने का कोई लाभ नहीं|
रोगी मरणासन्न है, अब डॉक्टर बुलाने का कोई लाभ नहीं| अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत|
५. आगे कुआं पीछे खाई
दोनों तरफ़ से मुसीबत होना|
दिमाग का ऑपरेशन कराने में लकवे का डर, ना कराए तो काम करने में मुश्किल| क्या करें हमारे तो आगे कुआं पीछे खाई है|
६. आम के आम गुठलियों के दाम
दोहरा लाभ
अखबार पढ़ो और रद्दी बेच दो |यह तो बढ़िया है आम के आम गुठलियों के दाम|
७. उल्टा उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
अपने दोष दूसरों पर मढ़ना|
अलोक बहुत चालाक है| काफी फाड़ दी और अब कहता है पहले से फटी थी| सच उल्टा चोर कोतवाल को डांटे|
८. ऊंची दुकान फीका पकवान
केवल बाहरी दिखावा
उसके शरबत की बहुत तारीफ सुनी थी| पर पीने में कुछ स्वाद ना आया| ऊंची दुकान फीका पकवान|
९. एक पंथ दो काज
एक कार्य से दोहरा लाभ
गरीबों को भोजन कराने से उनका पेट तो भरता ही है| पुण्य भी मिलता है| हुई न एक पंथ दो काज वाली बात|
१०. एक अनार सौ बीमार
वस्तु एक ग्राहक अनेक
एक नौकरी के लिए पचास लोगों की सिफारिश आ गई, इसे कहते हैं एक अनार सौ बीमार|
११. काला अक्षर भैंस बराबर
बिल्कुल अनपढ़
उसके रूप पर ना जाओ| बात करते ही पता लग जाएगा कि उसे कुछ नहीं आता| काला अक्षर भैंस बराबर है|
१२. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली
दो व्यक्तियों की स्थिति में बहुत अंतर होना|
सेठ और किसान पुत्रों में मित्रता अवश्य है, परंतु दोनों का क्या मुकाबला| कहां राजा भोज कहां गंगू तेली
१३. खग ही जाने खग की भाषा
चालाक ही चलाक की भाषा समझता है|
अमोक और अलोक इशारों में ना जाने क्या बातें करते हैं| मुझे तो कुछ समझ नहीं आता| खग ही जाने खग की भाषा|
१४. घर की मुर्गी दाल बराबर
घर की चीज की कद्र नहीं होती|
गांव के लोग मोहन का उपहास उड़ाते रहे, पर वो तो आईएएस परीक्षा पास कर गया| घर की मुर्गी दाल बराबर|
१५. जिसकी लाठी उसकी भैंस
बलवान की ही विजय होती है|
१६. जल में रहकर मगर से बैर
ताकतवर से शत्रुता नहीं की जा सकती|
१७. तेते पांव पसारिए जेती लांबी सौर
शक्ति के अनुसार ही खर्च करना चाहिए|
१८. थोता चना बाजे घना
ओछा व्यक्ति सदा दिखावा करता है|
१९. दूर के ढोल सुहाने
परिचय के अभाव में वस्तु का आकर्षक लगना|
२०. धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का
अस्थिरता के कारण कहीं का ना रहना
२१. नाच ना जाने आंगन टेढ़ा
दूसरों को दोष देना पर
२२. उपदेश कुशल बहुतेरे
दूसरे को उपदेश देना परंतु खुद अमल ना करना
२३. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद
मूर्ख व्यक्ति गुड़ का आदर करना नहीं जानता
२४. रस्सी जल गई पर ऐंठन ना गई
सब समाप्त हो गया किंतु शेखी अब भी वही की वही|
२५. होनहार बिरवान के होत चिकने पात
होनहार व्यक्तियों की प्रतिभा बचपन में ही दिखाई देने लगती है|
No comments:
Post a Comment
We love to hear your thoughts about this post!
Note: only a member of this blog may post a comment.