अपठित काव्यांश -३
[CBSE class 10 Sample Paper]
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रशनों के उत्तर लिखिए |
अरे चाटते जूठे पत्ते जिस दिन मैंने देखा नर को
उस दिन सोचा : क्यों न लगा दूँ आज आग इस दुनिया - भर को ?
यह भी सोचा : क्यों न टेंटुआ घोंटा जाये स्वयं जगपति का ?
जिसने अपने ही स्वरूप को दिया इस घृणित विकृति का |
जगपति कहाँ ? अरे, सदियों से वह तो हुआ राख की ढेरी
वरना समता संस्थापन में लग जाती क्या इतनी देरी ?
छोड़ आसरा अलख शक्ति का; रे नर, स्वयं जगपति तू है,
तू यदि जूठे पत्ते चाटे, तो मुझ पर लानत है, थू है |
ओ भिखमंगे, अरे पराजित, ओ मजलूम, अरे चिर दोहित,
तू अखंड भण्डार शक्ति का; जाग, अरे निद्रा-सम्मोहित,
प्राणों को तडपाने वाली हुंकारों से जल-थल भर दे,
अनाचार के अम्बारों में अपना ज्वलित पलीता धर दे |
उस दिन सोचा : क्यों न लगा दूँ आज आग इस दुनिया - भर को ?
यह भी सोचा : क्यों न टेंटुआ घोंटा जाये स्वयं जगपति का ?
credits:clker.com |
जगपति कहाँ ? अरे, सदियों से वह तो हुआ राख की ढेरी
वरना समता संस्थापन में लग जाती क्या इतनी देरी ?
छोड़ आसरा अलख शक्ति का; रे नर, स्वयं जगपति तू है,
तू यदि जूठे पत्ते चाटे, तो मुझ पर लानत है, थू है |
ओ भिखमंगे, अरे पराजित, ओ मजलूम, अरे चिर दोहित,
तू अखंड भण्डार शक्ति का; जाग, अरे निद्रा-सम्मोहित,
प्राणों को तडपाने वाली हुंकारों से जल-थल भर दे,
अनाचार के अम्बारों में अपना ज्वलित पलीता धर दे |