पाठ 2 - दुख का अधिकार (प्रश्न - उत्तर)
लेखक: यशपाल
प्रश्न 1: किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?
उत्तर: किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें उसके अधिकार व दर्जे का पता चलता है|
प्रश्न 2: खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तर: खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे नहीं खरीद रहा था क्योंकि स्त्री का पुत्र एक दिन पहले ही मरा था और वह दुकान पर बैठी घुटनों पर मुँह छुपाए फफक-फफक कर रो रही थी|
प्रश्न 3: उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा ?
उत्तर: उस स्त्री का रोना देखकर लेखक के मन में एक व्यथा सी उठी और वह उसके रोने का कारण जानने का उपाय सोचने लगा|
प्रश्न 4: उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर: उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण साँप का काटना था|वह खेत से खरबूजे लेने गया था| वहाँ उसे साँप ने काट लिया था|
प्रश्न 5: बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता था?
उत्तर: बुढ़िया को कोई भी उधार नहीं दे रहा था क्योंकि उसका कमाने वाला लड़का साँप के काटने से मर गया था| लोगों को पैसा वापस मिलने की उम्मीद नहीं थी|
प्रश्न 6: मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?
उत्तर: मनुष्य की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं| प्रायः पोशाक समाज में उनका अधिकार व दर्जा निश्चित करती हैं| यह मनुष्य के बारे में जानने का रास्ता है| अतः मनुष्य के जीवन में पोशाक का विशेष महत्त्व है|
प्रश्न 7:पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर: जब हम समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं तब पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है|
प्रश्न 8: लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
उत्तर: लेखक की पोशाक समाज में उनके उच्च स्तर को दर्शाती है| उसे लगता है कि फुटपाथ पर उस औरत के समीप बैठने में उसकी पोशाक रुकावट बन रही है| इसी कारण वह उस स्त्री से उसके रोने का कारण नहीं जान पाया|
प्रश्न 9: भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
उत्तर: भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन में कछियारी करता था और बाजार में फुटपाथ पर खरबूजे बेचकर अपना परिवार का निर्वाह करता था|
प्रश्न 10: लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?
उत्तर: बुढ़िया के घर में खाने पीने के लिए कुछ भी नहीं था| उसका सारा पैसा, अनाज व जेवर बेटे के इलाज में दान-दक्षिणा में निकल गए थे| भूख से बिलबिलाते बच्चों व बीमार बहू को देखकर वह दूसरे ही दिन खरबूजे बेचने चल पड़ी|
प्रश्न 11: बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तर: गरीब होने के कारण बुढ़िया को बेटे के मौत के दूसरे ही दिन बाज़ार में खरबूजे बेचने आना पड़ा| वह अपने पुत्र की मृत्यु का ठीक से शोक भी न मना पाई | यह देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद आ गई क्योंकि पैसे की कमी न होने के कारण उसे दुख मनाने का अधिकार था| उसके भी बेटे की मौत हुई थी| वह अपने बेटे की मौत का शोक अढ़ाई महीने से मना रही थी| परंतु गरीबी के कारण यह अधिकार बुढ़िया को नहीं था|
प्रश्न 12: बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे| अपने शब्दों में लिखिए|
उत्तर: बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे थे| कोई उसे बेहया कह रहा था तो कोई उसकी मृत्यु का दोष नियति को दे रहा था| एक आदमी कह रहा था कि इन लोगों के लिए रिश्तों का कोई मोल नहीं| इन्हें केवल पैसा प्यारा होता है| दुकान पर बैठे लाला का भी यह कहना था कि इन्हें समाज में अन्य लोगों के धर्म-ईमान का ध्यान नहीं| घर में सूतक होने के बावजूद वह खरबूजे बेचने आ गई है|
प्रश्न 13: पास पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
उत्तर: पास पड़ोस की दुकानों पर पूछने पर लेखक को बुढ़िया की वास्तविक स्थिति का पता चला कि बुढ़िया का 23 साल का जवान लड़का था |घर में उसकी बहू और पोता पोती भी थे| लड़का शहर के बाहर डेढ़ बीघा जमीन के मैं कछियारी निर्वाह करता था | एक सुबह खेत में खरबूजे चुनते समय एक साँप ने लड़के को डस लिया| बचाने की सारी कोशिशों के बाद भी लड़के की मृत्यु हो गई|
प्रश्न 14: लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया मां ने क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर: लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया मां ने वह सब कुछ किया जो एक गरीब माँ को करना चाहिए था |लड़के की माँ बावली होकर ओझा को बुला लायी| झाड़ना-फूँकना हुआ, नाग देवता की पूजा हुई ,पूजा के लिए दान-दक्षिणा दी गई| इस दान-दक्षिणा में बुढ़िया का सारा पैसा,अनाज और छोटे-मोटे सभी जेवर बिक गए थे|
प्रश्न 15: लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा कैसे लगाया?
उत्तर: बुढ़िया के दुख का अंदाजा लगाने के लिए लेखक पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुखी माता की बात सोचने लगा| वह महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी| उसे बार-बार मूर्छा आ जाती थी| धन के बल पर दो-दो डॉक्टर हर समय उसके सिरहाने बैठे रहते थे| इस प्रकार लेखक मां के हृदय की पीड़ा को समझ रहा था|
प्रश्न 16 :इस पाठ का शीर्षक दुख का अधिकार कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए|
उत्तर: अमीर हो या गरीब, दुख की अनुभूति सभी को बराबर होती है| इस कहानी में गरीब बुढ़िया पुत्र की मृत्यु पर उतनी ही दुखी है जितनी की संभ्रांत महिला| धन के बल पर संभ्रांत महिला को अपना दुख मनाने का पूरा अवसर था क्योंकि उसके दुख में डूबे रहने से किसी को भूखे पेट नहीं सोना पड़ रहा था| गरीब बुढ़िया अपार दुख के कारण घुटनों में मुँह छिपाए फफक-फफक कर रो रही थी| परंतु अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए बरसात में खरबूजे बेच रही थी| समाज की असमानता ने उसे दुख मनाने का अधिकार भी नहीं दिया था| इस प्रकार पाठ का शीर्षक पूर्ण रूप से सार्थक है|
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