Wednesday, 6 July 2022

Class 9 - Hindi - Dukh Ka Adhikar (Chapter Summary) - पाठ-दुख का अधिकार - सारांश - कक्षा- नौवीं विषय- हिंदी - पस्तक -स्पर्श #class9Hindi #eduvictors

पाठ-दुख का अधिकार - सारांश - कक्षा- नौवीं विषय- हिंदी - पस्तक -स्पर्श

Class 9 - Hindi - Dukh Ka Adhikar (Chapter Summary)

Class 9 - Hindi - Dukh Ka Adhikar (Chapter Summary) - पाठ-दुख का अधिकार - सारांश - कक्षा- नौवीं विषय- हिंदी - पस्तक -स्पर्श #class9Hindi #eduvictors


पाठ का सारांश

इस कहानी का प्रमुख पात्र एक तेईस साल का युवक है। जिसका नाम 'भगवाना' है। उसके पास डेढ़ बीघा जमीन है और वह उस जमीन में सब्जियाँ उगाकर अपने परिवार के सभी सदस्यों को (जिनमें उसकी माँ, पत्नी और बच्चे हैं) कमाकर खिलाता था। एक दिन भगवाना अपने खरबूजे के खेत में इधर-उधर घूम रहा था। लेकिन वहां छुपे सांप को देख ना पाने की वजह से उस समय उसका पैर साँप पर पड़ गया और साँप ने उसे डस लिया। उसकी माँ ने अपने बेटे को बचाने के लिए डॉक्टर के पास ना जाकर, झाड़-फूंक, ओझा, नागदेव आदि की पूजा कराई लेकिन भगवाना नहीं बच पाया और उसकी मृत्यु हो गई।

घर का सारा पैसा और सारा अनाज उसकी अंतिम क्रिया कर्म में लग गया। दूसरे दिन सुबह भूखे बच्चों का पेट भरने के लिए उन्हें खरबूजे खिलाए गए और बुखार से तपती बह के लिए भोजन जुटाने के लिए बुढ़ापे में भी बाज़ार में खरबूजे लेकर बेचने के लिए जाना पड़ा। दयाभाव छोड़ उस अधेड़ बुढ़िया को खरबूजे बेचते हुए देखकर लोग उसे ताने देने लगे। लोग उसकी विवशता पर विचार किए बिना उसे सहानुभूति देने के बजाय उसे बेहया और निष्ठर कहने लगे।

लेखक कहानी में आगे लिखते हैं कि उत्तरार्ध में पड़ोस की एक धनी महिला पुत्र शोक में वह ढाई महीने तक डॉक्टरों की देख-रेख में रहने पर भी हर पंद्रह मिनट में बेहोश होकर गिर जाती थी। लोग उसके प्रति सहृदयता से भर उठे थे। और वहीं दूसरी ओर वह गरीब बुढ़िया जिसका अब कमाने वाला कोई नहीं बचा और अत्यधिक निर्धन है उसका कोई हाल पूछने वाला भी नहीं है। अगर चोट लगती है तो दर्द सबको बराबर होता है चाहे वह अमीर हो या गरीब इसलिए सहानुभूति में भी समानता होनी चाहिए अर्थात हमें यह नहीं देखना चाहिए कि सामने वाला अमीर है या गरीब। शोक की प्रकृति में वर्ग भेद नहीं होता।

इस सत्य से परिचित होकर भी लोगों ने मात्र वर्ग भेद के आधार पर उस गरीब बुढ़िया के दुख को किसी ने नहीं समझा। लेखक भी उसी हालत में नाक ऊपर उठाए चल रहा था और अपने रास्ते में चलने वाले लोगों से ठोकरें खाता हआ चला जा रहा था और सोच रहा था कि शोक करने और गम मनाने के लिए भी इस समाज में सुविधा चाहिए और दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है।


पाठ से प्राप्त संदेश 

'दुख का अधिकार' पाठ के माध्यम से लेखक यशपाल जी ने समाज में उपस्थित अंधविश्वासों पर प्रहार किया है। लोगों की गरीबों के प्रति मानसिकता को भी उन्होंने इस कहानी के माध्यम से दर्शाया है। किसी भी भू-भाग में चले जाएँ अमीरी और गरीबी का अंतर आपको स्पष्ट रूप से दिख जाएगा। परंतु इस आधार पर किसी के साथ अमानवीय व्यवहार करना हमें नहीं सुहाता। लेखक पाठ के माध्यम से एक वृद्ध स्त्री के दुख का वर्णन करता है। उस वृद्ध स्त्री का एक ही बेटा था। उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है। घर की सारी ज़िम्मेदारी वृद्ध स्त्री पर आ जाती है। धन के अभाव में बेटे की मृत्यु के अगले दिन ही वृद्धा को बाज़ार में खरबूज़े बेचने आना पड़ता है। आस-पास के लोग उसकी मजबूरी को अनदेखा करते हए, उस वृद्धा को बहत भला-बुरा बोलते हैं। लेखक समाज को यही संदेश देना चाहते हैं कि गरीबों की मजबूरी को कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए। यह सत्य है कि दुख समान रूप से सबके जीवन में आता है। सभी अपनों के जाने का दुख । मनाना चाहते हैं पर अपनी आर्थिक स्थिति के कारण मना नहीं पाते। भारत जैसे देश में बहुत से लोग हैं, जिन्हें यह समाज दुख मनाने का अधिकार भी नहीं देता है। यह हमारे लिए विडंबना की बात है।


इन्हें भी देखें 

हिंदी (ब) - स्पर्श -२ - पाठ 2 दुःख का अधिकार (प्रश्न - उत्तर)
हिंदी (ब) - स्पर्श -२ - पाठ 2 दुःख का अधिकार(आशय स्पष्ट कीजिए

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