Thursday, 4 August 2022

चाँद से थोड़ी-सी गप्पें - कविता का सार और व्याख्या - कक्षा-6 विषय- हिंदी पुस्तक - वसंत भाग- 1 Class 6 Hindi - Chaand Se Thodi Gappen - Poem Summary #eduvictors #class6Hindi

चाँद से थोड़ी-सी गप्पें - कविता का सार और  व्याख्या 

कक्षा-6 विषय- हिंदी पुस्तक - वसंत भाग- 1

Class 6 Hindi - Chaand Se Thodi Gappen - Poem Summary 

चाँद से थोड़ी-सी गप्पें - कविता का सार और  व्याख्या - कक्षा-6 विषय- हिंदी पुस्तक - वसंत भाग- 1 Class 6 Hindi - Chaand Se Thodi Gappen - Poem Summary #eduvictors #class6Hindi


कविता का परिचय


चाँद से थोड़ी-सी गप्पें' कविता 'शमशेर बहादुर सिंह' द्वारा लिखित है। लेखक ने बालिका के माध्यम से बाल-मनेविज्ञान का सुंदर चित्रण किया है |



कविता का सार


इस कविता में कवि ने दस-ग्यारह साल की एक लड़की के मन का वर्णन किया है। वह जिज्ञासु प्रवृत्ति की होने के कारण चाँद से कई सवाल पूछना चाहती है और उनके बारे में अधिक जानना चाहती है। वह सारे आकाश को चाँद का वस्त्र समझती है जिस पर कई सितारे जड़े हैं। कविता के माध्यम से कवि प्रकृति और मनुष्य के बीच के अदभुत संबंध को एक छोटी-सी बालिका के चाँद के साथ संवाद के द्वारा चित्रित करना चाहते हैं।



केंद्रीय भाव (Theme)


इस कविता मैं कवि ने बाल सुलभ कल्पनाओं का वर्णन किया है। बच्चों ने चाँद से अनेक ढंग से अपना संबंध जोड़ रखा है। वे चाँद को देखकर अनेक कल्पनाएँ करते हैं।



कविता की व्याख्या


प्रथम पद:


गोल हैं खूब मगर


आप तिरछे नज़र आते हैं ज़रा।

आप पहने हुए हैं कुल आकाश

तारों-जड़ा;


सिर्फ़ मुँह खोले हुए हैं अपना

गोरा-चिट्टा

गोल-मटोल


व्याख्या

चाँद से थोड़ी सी गप्पें सारांश प्रथम पद: चाँद से थोड़ी सी गप्पें कविता के प्रथम पद में बालिका चाँद से कह रही है कि यूं तो आप गोल हैं पर फिर भी थोड़े-से तिरछे दिखाई देते हैं। ये आकाश मुझे आपके वस्त्र की तरह नज़र आता है, जिसमें अनगिनत तारे जड़े हुए हैं तथा इस पूरे विशाल पोशाक-रूपी आसमान में आप अकेले ही गोल-मटोल और गोरे-चिट्टे-से अपनी आभा फैलाए हुए दिखाई पड़ते हैं।



द्वितीय पद:


अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त।

आप कुछ तिरछे नज़र आते हैं जाने कैसे

- खूब हैं गोकि!


वाह जी, वाह!


हमको बुद्धू ही निरा समझा है!


हम समझते ही नहीं जैसे कि


आपको बीमारी है:


व्याख्या

चाँद से थोड़ी सी गप्पें सारांश द्वितीय पद: चाँद से थोड़ी सी गप्पें कविता के इस पद में लड़की चाँद से कहती है कि ये जो आप थोड़े-से तिरछे से नज़र आते हो, अच्छे तो लगते हो, पर हमको आप बेवकूफ़ न समझना, हम सब जानते हैं कि आपका ये तिरछापन आपकी किसी बीमारी की वजह से है।



तृतीय पद:


आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं,

और बढ़ते हैं तो बस यानी कि


बढ़ते ही चले जाते हैं-


दम नहीं लेते हैं जब तक बिलकुल ही

गोल न हो जाएँ,


बिलकुल गोल।


यह मरज़  आपका अच्छा ही नहीं होने में...

आता है।



व्याख्या

चाँद से थोड़ी सी गप्पें सारांश तृतीय पद: चाँद से थोड़ी सी गप्पें कविता के इस अंतिम पद में बालिका चाँद से कहती है कि आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं और बढ़ते हैं तो बढ़ते ही चले जाते हैं। पता नहीं क्यों, आपकी ये बीमारी ठीक ही नहीं हो रही है। अत: छोटी बालिका चाँद के घटते और बढ़ते रूप को एक बीमारी समझ रही है।





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