बिहारी के दोहे
प्रश्न 1 – छाया भी कब छाया ढूँढ़ने लगती है?
उत्तर- जेठ के महीने में धूप इतनी तेज होती है कि सिर पर आने लगती है जिससे छाया छोटी होती जाती है। इसलिए कवि का कहना है कि जेठ की दुपहरी की भीषण गर्मी में छाया भी छाया ढूँढ़ने लगती है।
प्रश्न 2 - बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है - कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात- स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- बिहारी की नायिका अपने हृदय की व्याकुलता का सन्देश प्रिय को पत्र द्वारा देना चाहती है पर कागज पर लिखते समय अतिशय प्रेम की स्थिति में अपनी कोमल भावनाओं को अभिव्यक्त करने में स्वयं को असमर्थ पाती है । किसी के साथ संदेश भेजने में उसे लज्जा आती है । इसलिए वह सोचती है कि जो विरह अवस्था उसकी है, वही उसके नायक की भी होगी। अतः वह प्रेम से कहती है कि उसके हृदय में छिपी प्रेम की अनुभूति को वह स्वयं समझ ले | इसके लिए किसी भी प्रेम सन्देश की आवश्यकता नहीं है |
प्रश्न 3 - सच्चे मन में राम बसते हैं−दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कवि बिहारी के अनुसार भक्ति का सच्चा स्वरूप हृदय की सच्चाई में निहित है| बिहारी जी ने पाखण्ड व आडम्बर का विरोध किया है | वे कहते हैं कि मस्तक पर तिलक लगाकर और राम नाम के वस्त्र पहनकर या हाथ में माला लेकर राम नाम जपने से न तो किसी कार्य में सफलता मिलती है और न ही ईश्वर की प्राप्ति होती है | कवि के अनुसार यदि मन छल-कपट से भरा है तो राम की प्राप्ति नहीं हो सकती |माया के बन्धनों से मुक्त निर्विकार मन शुद्ध, पवित्र और निर्मल होता है | इसलिए व्यक्ति को विषय-वासनाएँ मिटाकर और बाहरी आडम्बरों को त्यागकर सच्चे मन से ईश्वर की उपासना करनी चाहिए | भगवान राम तो सच्चे मन की भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं।
प्रश्न 4 - गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?
उत्तर- गोपियाँ कृष्ण जी से बातें करने की अभिलाषी हैं और श्री कृष्ण के मुख से निकली प्रेमपूर्ण बातों का रसास्वादन करना चाहती हैं ।कृष्ण जी को अपनी बाँसुरी बहुत प्रिय है और वे उसे बजाते ही रहते हैं। वे कृष्ण का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मुरली छिपा देती हैं जिससे उन्हें श्री कृष्ण से बातें करने का अवसर मिल सके।
प्रश्न 5 - बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- घर में सबकी उपस्थिति में नायक और नायिका अपने नैनों की भाषा में बात करते हैं | यह बिहारी की काव्य-कला का ही चमत्कार है कि इस प्रकार नायक और नायिका एक ऐसे स्थान पर, जहाँ लोगों की उपस्थिति में बात संभव नहीं थी, आपस में बात कर पाते हैं | बिहारी ने बताया है कि नायक और नायिका सबकी उपस्थिति में इशारों में अपने मन की बात करते हैं। नायक सबकी उपस्थिति में नायिका को इशारा करता है। नायिका इशारे से मना करती है । इस पर नायक रीझ
जाता है। इस रीझ पर नायिका खीझ जाती है। दोनों के नेत्र मिलते हैं, नायक का चेहरा खिल जाता है और नायिका की आँखों में लज्जा होती है । नैनों की भाषा भी काफ़ी सशक्त होती है, यह बिहारी ने इस दोहे से सिद्ध किया है|
प्रश्न 6 - मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।
उत्तर- इस पंक्ति में कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन है। कृष्ण के नीले शरीर पर पीले रंग के वस्त्र बहुत सुशोभित हो रहे हैं। बिहारी जी ने श्री कृष्ण के मनमोहक रूप की तुलना नीलमणि पर्वत पर पड़ती सूर्य की प्रातःकालीन किरणों द्वारा निर्मित सुन्दर दृश्य से की है |
प्रश्न 7 - जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
उत्तर- बिहारी जी ने इस पंक्ति द्वारा यह बताया है कि ग्रीष्म ऋतु की भीषण गर्मी से पूरा जंगल तपोवन बन गया है। सबकी आपसी दुश्मनी समाप्त हो गई है। साँप, हिरण और सिंह सभी गर्मी से बचने के लिए साथ रह रहे हैं। उनका आपसी बैर समाप्त हो गया है|
प्रश्न 8 - जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।
उत्तर- बिहारी का मानना है कि बाहरी आडम्बरों से ईश्वर नहीं मिलते। माला फेरने, हल्दी चंदन का तिलक लगाकर या छापै लगाकर भक्ति करने से एक भी कार्य पूरा नहीं होता अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। सच्ची भक्ति तो मन की पवित्रता, सच्चाई और श्रध्दा से प्राप्त होती है क्योंकि भगवान शुद्ध एवं पवित्र हृदय में वास करते हैं। राम तो सच्चे मन से याद करने वाले के हृदय में रहते हैं, इसलिए मनुष्य को आडम्बरों का त्याग कर देना चाहिए ।
Good one.
ReplyDeleteNice.It was very helpful.
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