धूल
कक्षा ९ - हिंदी (ब)
पाठ -१ स्पर्श
लेखक रामविलास शर्मा
प्रश्न १: हीरे के प्रेमी उसे किस रुप में पसंद करते हैं?
उत्तर: हीरे के प्रेमी हीरे को साफ-सुथरा, खरादा हुआ और आंखों में चकाचौंध पैदा करता हुआ देखना पसंद करते हैं|
प्रश्न २: लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
उत्तर: रामविलास शर्मा जी ने अखाड़े की मिट्टी और उसमें सनने से मिलनेवाले स्वभाविक सुख को दुर्लभ माना है|
प्रश्न ३: मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है?
उत्तर: मिट्टी की आभा धूल है| मिटटी का रंग रुप ही उसकी पहचान होती है|
प्रश्न ४: धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?
उत्तर : भारतीय ग्रामीण जीवन में गोधूलि-बेला का विशेष महत्व रहा है| गोधूलि-बेला में उड़ती हुई धूल शिशु के मुख पर सुशोभित होती है| एक शिशु दुनिया में सबसे बड़े हीरे से भी कीमती होता है| उसकी सुंदरता दुनिया में हर चीज से बढ़कर है| धूल शिशु के सौंदर्य को बढ़ाती है| धूल में सने श्री कृष्ण का सौंदर्य अदभुत था| जिस का बचपन गांव में बीता हो, वह धूल के बिना जीवन की जीवन की कल्पना नहीं कर सकता| धूल के संपर्क से शिशु एक विशेष प्रकार के सुख का अनुभव करता है | धुल में बच्चों का स्वाभाविक विकास होता है | इसलिए लेखक ग्रामीण परिवेश में पलने वाले शिशु की धूल के बिना कल्पना नहीं कर सकता |
प्रश्न ५: हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?
उत्तर : हमारी सभ्यता को सहज, स्वभाविक सौंदर्य प्रिय नहीं है| पाश्चात्य व आधुनिक संस्कृति के प्रभाव के कारण उनके पैर जमीन पर नहीं पड़ते| वे धूल से बचने के लिए आसमान में घर बनाना चाहते हैं| उन्हें लगता है कहीं धूल से इनके बनावटी श्रृंगार धुंधले ना पड़ जाए| धूल से सने बच्चों को उठाने से उन्हें डर लगता है कि कहीं उनके कपड़े खराब ना हो जाए| तात्पर्य यह है कि नई सभ्यता ग्रामीण संस्कृति से बचना चाहती है|
प्रश्न ६ : अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
उत्तर: लेखक अखाड़े की मिट्टी को साधारण धूल नहीं मानता है| अखाड़े की मिट्टी में सरसों का तेल और मट्ठा मिलाया जाता है जिसके कारण उसमें अलग तरह की चिकनाहट होती है| पसीने से तर बदन पर मिट्टी चिपकती नहीं है, फिसलती है| अखाड़े में चित्त हो जाने पर उसके चेहरे पर विश्व विजयी जैसा भाव होता है|
प्रश्न ७ : श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?
उत्तर : श्रद्धा, भक्ति और स्नेह की भावना व्यक्त करने के लिए धूल सर्वोत्तम साधन है| लोगों में अपनी मिट्टी के लिए श्रद्धा, भक्ति और स्नेह होता है| इसलिए:
- स्त्री उसे माथे पर लगा कर अपने पवित्र होने का सबूत देती है|
- इसी धूल को माथे पर लगा कर अपने देशभक्त होने का सबूत देता है|
- धूल भरे बालक को गोदी में उठाकर मां बाप उसके प्रति स्नेह की भावना प्रकट करता है|
धूल भावनाओं की अभिव्यक्ति का साधन है|
प्रश्न ८: इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग किया है?
उत्तर: इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता की बनावटीपन की भावना पर व्यंग किया है| इस सभ्यता को साफ सुथरा, खरादा हुआ व चकाचौंध से भरपूर सौंदर्य पसंद है| लोग धूल को मैल कहकर उस से बचते हैं| अपनी धूल से बचने वाली आदत के कारण ही नगरवासी धूल में सनने व स्वभाविक खेलों के आनंद से वंचित रहते हैं|
प्रश्न ९: लेखक 'बालकृष्ण' के मुंह पर छाई गोधूलि को क्यों श्रेष्ठ मानता है?
उत्तर: लेखक 'बालकृष्ण' के मुंह पर छाई गोधूलि को इसलिए श्रेष्ठ मानता है क्योंकि यह धूल उनके सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देती है| हीरे की कीमत उसकी चमक और सफाई से लगाई जाती है| हीरे का सौंदर्य बनावटी होता है और लोग उसी सौंदर्य को पसंद करते हैं| अभिजात्य वर्ग ने ने सौंदर्य प्रसाधन के अनेक साधनों का अविष्कार कर लिया है| लेकिन बालक की सौंदर्य वृद्धि जितना धूल कर सकती है उतना कोई और श्रृंगार नहीं| ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसका बचपन गांव में बीता हो वह धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं कर सकता| इसलिए लेखक ने बालकृष्ण के मुंह पर लगी गोधूलि को श्रेष्ठ माना है|
प्रश्न १०: लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है?
उत्तर: लेखक ने धूल और मिट्टी के अंतर को ज्यादा बड़ा नहीं माना है| दोनों एक दूसरे के पूरक है| मिट्टी और धूल में इतना ही अंतर है, जितना कि शब्द और रस में, देह और प्राण में, चांद और चांदनी में| जिस प्रकार यह अलग-अलग होते हुए भी एक है उसी प्रकार धूल और मिट्टी अलग नाम होकर भी एक है| मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग रूप की पहचान उसकी धूल से होती है|
प्रश्न ११: ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?
उत्तर: ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के अनेक सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है:-
१. ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े बच्चों के मुख पर छाई धूल उन की पवित्रता को निखार देती है|
२. धूल चांदनी रात में मेले में जाने वाली गाड़ियों के पीछे कवि कल्पना की भांति उड़ती चलती है|
३. धूल शिशु के मुंह पर फूल की पंखुड़ियों पर दिखने वाली सुंदरता की तरह छा जाती है|
४. शाम के समय जंगल से लौटते समय गायों के पैरों से उठती धुन गोधूलि की पवित्रता को प्रमाणित करती है|
५. सूर्य अस्त के बाद बैलगाड़ी के निकल जाने के उपरांत उसके पीछे उड़ने वाली धूल रुई के बादल के समान दिखाई देती है|
६. गांव के किसानों के हाथ पैर तथा मुंह पर छाई धूल हमारी सभ्यता को प्रकट करती है|
प्रश्न १२ : 'हीरा वही घन चोट न टूटे' - का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए|
उत्तर: लेखक इस पंक्ति में हीरे और काँच की तुलना करते हुए कहते हैं कि सच्चा हीरा वही होता है जो हथौड़े की चोट पर पड़ने पर भी नहीं टूटता| काँच और हीरे में यही मुख्य अंतर है| कुछ लोग काँच की चमक को हीरे की चमक मान बैठते हैं| लेकिन जब उसका परीक्षण किया जाता है तो सच्चाई सामने आ जाती है| हीरा शाश्वत है और काँच क्षणिक| लेखक के अनुसार धूल में लिपटा किसान आज भी अभिजात (अमीर) वर्ग की उपेक्षा का पात्र है| किसान एक ऐसा हीरा है जो धूल से भरा है| हीरा अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है| जो हथौड़े की चोट से भी नहीं टूटता| इसी प्रकार से भारतीय किसान भी कठोर परिश्रम से नहीं घबराता इसलिए वह अटूट है|
प्रश्न १३: धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनों को स्पष्ट कीजिए?
उत्तर: धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजना अलग-अलग है|
१. धूल - धूल जीवन का यथार्थवादी गद्य है|
२. धूलि - धूलि उसी जीवन की कविता है|
३. धूली - धूली छायावादी दर्शन है जिसकी वास्तिक वास्तविकता संदिग्ध है|
४. धूरि - धूरि लोक संस्कृति का नवीन जागरण है|
५. गोधूलि - गोधूलि गांव के गोपालों के पदों की धुली या गांव के जीवन का श्रमसाध्य चित्र है|
प्रश्न १४: 'धूल' पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए|
उत्तर: धूल पाठ के माध्यम से लेखक ने धूल की महिमा महान, माहात्म्य, उपलब्धता और उपयोगिता का वर्णन किया है| ग्रामीण संस्कृति के महत्व को दर्शाने के साथ ही शहरी संस्कृति की आलोचना भी है| लेखक ने पाठकों को अखाड़ों, गांवों और शहरों के जीवन जगत की सैर के साथ ही धूल के नन्हे कणों के वर्णन से देशप्रेम तक का पाठ पढ़ाया है| इस पाठ के माध्यम से लेखक ने मजदूर किसानों के महत्व को स्पष्ट किया है| उनका मानना है कि धूल से सना व्यक्ति घृणा अथवा उपेक्षा का पात्र नहीं होता | लेखक ने देशप्रेम और संस्कृति की प्रतीक धूल को विभिन्न शक्तियों लोकोक्तियां तथा उदाहरणों के माध्यम से प्रतिपादित किया है|
प्रश्न १५: कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर: कविता सौंदर्य की रचना करना चाहती है| गोधूलि पर अनेक कवियों ने कविता लिखी है परंतु वह उस धूलि को सजीवता से चित्र नहीं कर पाए हैं जो गांव में संध्या के समय गाय चरा कर लौटते समय ग्वालों और गांव गायों के पैर से उठती है| यह कविता की विडंबना है कि शहर में रहने वाला पाठक इस बेला की सुंदरता को नहीं देख पाता है शहरों में धूल-धक्कड़ तो होता है परंतु गांवो की गोधूलि नहीं होती|
प्रश्न १६: निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए|
फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुंह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है|
उत्तर: इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि शिशु धूल मिट्टी से सना हुआ ही अच्छा लगता है| धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती| इसी कारण धूल से सने शिशु को 'धूल भरे हीरे' कहा जाता है| जैसे धूल के ऊपर पड़े हुए धूल के कण उसकी शोभा को बढ़ा देते हैं, वैसे ही शिशु के मुंह पर पड़ी हुई धूल उसके सहज स्वरूप को और भी निखार देती है| धूल मुख की कांति को शोभायमान करती है| जीवन कर्मशील हो उठता है, इसलिए धूल को व्यर्थ नहीं मानना चाहिए|
प्रश्न १७: 'धन्य धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की ' - लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर: इस पंक्ति द्वारा लेखक यह कहना चाहता है कि धूल से सने बच्चों को गोद में उठाने वाले धन्य है जो अपने शरीर से धूल को स्पर्श करते हैं| लेखक ने धूल की उपयोगिता और महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि ग्रामीण वातावरण में पले-बढ़े बच्चे धन्य है जो धूल से सने अपने शिशु को गोद से लिपटा लेते हैं| फलस्वरूप वह पवित्र धूल उनके शरीर को भी पवित्र कर देती है| इसलिए कवि ने उन्हें 'धूल भरे हीरे' कहकर संबोधित किया है|
प्रश्न १८: मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही जितना शब्द और रस में देह और प्राण में चांद और चांदनी में| स्पष्ट कीजिए|
उत्तर: शरीर अगर मिट्टी है तो आत्मा उसका सार तत्व है| मिट्टी शरीर को विभिन्न आकार देती है तो धूल जीवन की स्वाभाविकता को बनाए रखती है| जिस प्रकार शब्द में रस निहित होता है, देह में प्राण और चंद्रमा में चांदनी का वास होता है| उन्हें एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता| उसी प्रकार धूल और मिट्टी दोनों एक ही है| मिट्टी के रंग रूप की पहचान धूल से होती है | धूल जीवन की सरलता व भोलेपन को बनाए रखती है | इससे हम अपनी सभ्यता से जुड़े रहते हैं|
प्रश्न१९: हमारी देशभक्ति धूल को माथे से ना लगाएं तो कम से कम उस पर पैर तो रखें| स्पष्ट कीजिए|
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति में लेखक ने हमारी आज की नई पीढ़ी पर व्यंग किया है| लेखक कहते हैं कि हमारे देशवासी हमारी देशभक्ति की प्रतीक धूल को माथे से ना लगाएं तो ना सही पर कम से कम अपने देश में तो रहे| कहने का आशय है कि हमारे देशवासी पाश्चात्य सभ्यता से इतने प्रभावित है कि देश के प्रति कर्तव्य और उसका सम्मान करना भूलकर पश्चिमी देशों में जाकर बसना चाहते हैं|
प्रश्न२० :वह उलट कर चोट भी करेंगे और तब कांच और हीरे का भेद जानना बाकी ना रहेगा| स्पष्ट कीजिये|
उत्तर: लेखक कहना चाहता है कि पाश्चात्य सभ्यता में रंगे नगरीय सभ्यता के लोग हमेशा धूल में कार्य करने वाले अपने किसानो और मजदूरों की कीमत नहीं पहचानते| उन्हें तो आडंबर युक्त झूठे नकाबपोश लोग ही अच्छे लगते हैं| हमारे किसानों का शोषण हुआ है परंतु ये हीरे कभी टूटे नहीं अर्थार्थ हिम्मत नहीं हारें| जब ये हीरे इन नकाबपोशों को बेनकाब कर देंगे, तब सब को इन सबकी असली तस्वीर का पता चल जाए जाएगा|
If there would be more small answers it would be better !!
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