अग्निपथ
हरिवंशराय बच्चन (१९०७-२००३)
वृक्ष हो भले खडे,
हों घने, हों बडे,
एक पत्र छाहं भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |
तू न थकेगा कभी,
तू न थमेगा कभी,
तू न मुडेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु, स्वेद, रक्त से,
लथपथ, लथपथ, लथपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |
हों घने, हों बडे,
एक पत्र छाहं भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |
तू न थकेगा कभी,
तू न थमेगा कभी,
तू न मुडेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु, स्वेद, रक्त से,
लथपथ, लथपथ, लथपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |
कविता का सारांश
प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य के संघर्ष भरे जीवन को अग्निपथ समान कहा है। यह कविता कहती है कि कर्मशील मनुष्य का श्रम अग्नि के रास्ते जैसा है । उसे अपना कार्य करते हुए , राह में सुख की चाह न कर, बिना रुके, बिना विश्राम किए अपनी मंजिल की ओर एकाग्रचित्त होकर बढते जाना चाहिए। कवि ने मनुष्य को दृढ़ता से डटे रहने तथा बिना विचलित हुए अपनी राह (कार्य) पर बढ़ते रहने की प्रेरणा दी है। यह जीवन फूलों की नहीं, बल्कि काँटों की शय्या है। यहाँ मनुष्य को हर परिस्थिति का सामना करते हुए, बिना रुके अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए । कवि इस कविता के द्वारा यह सन्देश देने का प्रयास कर रहे हैं। कर्मठशील मनुष्य ही सफलता को प्राप्त कर सकता है।
कठिन शब्दों के अर्थ
अग्निपथ - कठिनाइयों से भरा हुआ मार्ग।
पत्र - पत्ता
शपथ - कसम
अश्रु - आंसू
स्वेद - पसीना
रक्त - खून
लथपथ - सना हुआ।
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