Tuesday 22 February 2022

कक्षा १० - हिंदी ब - सपनों के-से दिन - प्रश्न - उत्तर - Class 10 Hindi B - Sapnon Ke Se Din - Questions and Answers #class10Hindi #eduvictors

कक्षा १० - हिंदी ब - सपनों के-से दिन - प्रश्न - उत्तर

Class 10 Hindi B - Sapnon Ke Se Din - Questions and Answers 

कक्षा १० - हिंदी ब - सपनों के-से दिन - प्रश्न - उत्तर - Class 10 Hindi B - Sapnon Ke Se Din - Questions and Answers #class10Hindi #eduvictors

लेखक : गुरदयाल सिंह 

प्रश्न १ : कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है ?

उत्तर: लेखक अपने बचपन की घटना बताता है कि उसकी खेलने वाली मंडली में कुछ बच्चे हरियाणा के तथा कुछ राजस्थान के थे। उनकी भाषा सुनने में प्रारंभ में कुछ अटपटी लगी परंतु खेलते समय भाषा पूरी तरह समझ आ जाती थी। 

प्रश्न २ (बहुविकल्पीय प्रश्न): लेखक के साथ खेलने वाले लड़के स्कूल क्‍यों नहीं जाते थे?

(क) उनके परिवार वाले बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी नहीं समझते थे
(ख) उनको पढ़ने में रुचि नहीं थी
(ग) वे बस खेलना चाहते थे
(घ) आस-पास स्कूल नहीं था


उत्तर: (क) उनके परिवार वाले बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी नहीं समझते थे
लेखक के साथ खेलने वाले लड़के स्कूल इसलिए नहीं जाते थे, क्योंकि उनके पवार वाले बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी नहीं समझते थे।


प्रश्न ३: पीटी साहब की 'शाबाश' फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: उत्तर -पीटी साहब प्रीतमचंद बच्चों को कभी अनुशासन के लिए तो कभी पढ़ाई के लिए हमेशा फटकारते तथा पीटते रहते थे। जब कभी स्काउटिंग करवाते तथा बच्चे जरा भी चूक न करते तो वे 'शाबास' बोलते। हमेशा डाँटने वाला यदि कभी प्यार से बोले तो बेहद खुशी मिलना स्वाभाविक बात है। यह 'शाबास' शब्द बच्चों को फ़ौज के तमगों - सा लगता था। 


प्रश्न ४: नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?

उत्तर: नयी श्रेणी में जाते कुछ मास्टर तो वही होते थे जो पिछली श्रेणी में पढ़ाते थे परंतु कुछ नए होते थे। नए अध्यापकों से डर स्वाभाविक था। इसके अलावा जो अध्यापक पहले पढ़ा चुके होते थे वे सभी बच्चों से हरफनमौला होने की उम्मीद करते थे और उम्मीदों पर खरा न उतरने पर पिटाई भी होती थी। अतः जो नई श्रेणी में मुख्याध्यापक उसे किसी की पुरानी किताबें दिलाते थे और नई कापियाँ मिलती थी उनसे भी उसे उदासी ही मिलती थी।


प्रश्न ५(बहुविकल्पीय प्रश्न):  बच्चे रेल-बम्बा' किसको कहते थे?
(क) रेल के इंजन को 
(ख) रेल के डिब्बों को
(ग) ओमा के सर की टक्कर को 
(घ) रेल की पटरी को

उत्तर: (ग) ओमा के सर की टक्कर को 
बच्चे 'रेल-बम्बा' ओमा के सर की टक्कर को कहते थे।

प्रश्न ६: स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्ण 'आदमी' फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता था?

उत्तर: स्काउट परेड करते समय धोबी से धुली वर्दी, पालिश किए बूट तथा जुराबों को पहन कर जब लेखक ठक-ठक करके चलता था तो वह अपने आपको फौजी से कम नहीं समझता था। वह अकड़कर चलता तो अपने अंदर एक फौजी की आन, बान और शान महसूस करता था।


प्रश्न ७: हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?

उत्तर: एक दिन पीटी मास्टर ने बच्चों को एक फ़ारसी शब्द रूप याद करने को दिया। बहुत याद करने पर भी एक भी बच्चा शब्द रूप न सुना पाया तो मास्टर क्रोधित हो गया। उसने सारे बच्चों को मुर्गा बना दिया। इस अवस्था में छोटे बच्चे तीन-चार मिनट में ही लुढक कर गिरने लगे। अचानक मुख्याध्यापक वहाँ से आ निकले। वे नन्हें बच्चों पर ऐसा दण्ड सहन न कर पाए और उन्होंने पीटी मास्टर को मुअत्तल कर दिया।


प्रश्न ८: लेखक को बचपन में पुरानी पुस्तकों से ही क्‍यों पढ़ना पड़ा?

उत्तर: हेडमास्टर शर्मा जी एक लड़के को उसके घर जाकर पढ़ाया करते थे। वे धनाढ्य लोग थे। उनका लड़का लेखक से एक-दो साल बड़ा होने के कारण एक श्रेणी आगे रहा। हर साल अप्रैल में जब पढ़ाई का नया साल आरंभ होता तो शर्मा जी उसकी एक  साल पुरानी पुस्तकें ले आते। लेखक उन्हीं पुरानी पुस्तकों से पढ़ता क्योंकि लेखक के घर में किसी को भी पढ़ाई से दिलचस्पी न थी।


प्रश्न ९: लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा ?

उत्तर: जब स्कूल में सब बच्चों को रंग-बिरंगे झण्डे देकर, गले में रूमाल बाँधकर मास्टर प्रीतमचंद परेड करवाते थे, तो लेखक को बहुत अच्छा लगता था। जब मास्टर ह्रिसल बजाकर राइट टर्न, लेफ्ट टर्न या अबाउट टर्न कराते थे और सब बच्चे ठक-ठक करके चलते थे। तब मास्टर उन्हें 'शाबास' कहते जो लेखक को पूरी साल मिले 'गुड्डों' से भी प्यारा लगता था। इन्हीं वजहों से स्कूल में खुशी से न जाना भी स्कूल में जाना अच्छा लगने लगा।


प्रश्न १०: लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति 'बहादुर' बनने की कल्पना किया करता था?

उत्तर:  लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल में मिले छुट्टियों के काम को पूरा करने के लिए समय सारणी बनाता था तथा यह निश्चित करता था कि इतना कार्य एक दिन में करना है। धीरे-धीरे समय बीतने लगता तथा खेलने के चक्कर में काम पूरा न होता तो वह ओमा नामक ठिगने तथा बलिष्ठ लड़के जैसा बनना चाहता जो बहुत उद्धण्ड था तथा जो काम करने की बजाय पिटने को 'सस्ता सौदा' समझता था।


प्रश्न ११: पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर
व्यक्तित्व - कभी हँसता न दिखने वाले मास्टर प्रीतमचंद का शरीर गठीला तथा दुबला-पतला, ठिगना कद, चेहरे पर माता के दाग थे। उसकी आँखें बाज-सी भूरी तथा तेज़ थी। वह खाकी वर्दी तथा लम्बे जूते ( जो ऊँची एडियों वाले तथा खुरियों वाले थे ) पहनता था।

अनुशासन - वह एक सख्त अनुशासक था। अगर बच्चा पंक्ति में जरा-सा भी बाहर निकल जाता तो वह उसकी पिटाई करता था। इस भय से बच्चे पंक्ति में आगे पीछे के बच्चों का विशेष ध्यान रखते थे।

बर्बर - अध्यापक फारसी शब्द रूप को याद न कर पाने पर बच्चों को मुर्गा बना कर पिटाई करता है। नन्हें बच्चों को ऐसी कठोर सजा देते हुए मुख्याध्यापक देख लेते हैं। वे अपने उदार हृदय के कारण इस दण्ड को सहन नहीं कर पाते तथा इस बर्बरता के लिए पीटी अध्यापक को निलम्बित कर देते हैं।


प्रश्न १२: विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर
(क) पाठ में अनुशासन के लिए अपनाई युक्तियाँ - विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पीटी अध्यापक पिटाई जैसे कठोर दण्ड का सहारा लेता है जो एक निंदनीय मार्ग है।

(ख) वर्तमान में स्वीकृत मान्यताएँ - अब अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया जाता है कि बच्चों के हर कार्य के कारण को जान सकें तथा प्यार से उसकी गलती का एहसास करा कर उसे समझाया जाए। अध्यापक छात्रों से मित्रता तथा ममता का व्यवहार करते हैं। बच्चे अब स्कूल से डरते नहीं है बल्कि खुशी-खुशी जाते हैं। 


प्रश्न १३: बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादों को लिखिए।

उत्तर: जब मैं आठवीं में पढ़ती थी तब हमें कमलेश नामक अध्यापिका चित्रकला पढ़ाती थी। वह बहुत ही सख्त थी तथा कोण या विधि में अगर लिखते समय गलती हो जाती तो पिटाई करती थी। मुझे उससे मन ही मन नफरत थी। धीरे-धीरे परीक्षा भी आ गई। हम परीक्षा देने दूसरे गाँव में जाते थे। चित्रकला की परीक्षा में हमारी अध्यापिका हमारे साथ नहीं गई जबकि दूसरे बच्चों के साथ उनकी अध्यापिकाएँ आई थी। हमें क्रमांक तथा कमरा ढूंढ़ने में तकलीफ हुई। पेपर में मॉडल समझ नहीं आ रहा था। जब मैंने एक अध्यापिका से मॉडल का प्रश्न समझने के लिए पूछा तो वह तपाक से बोली कि उस 'पागल' को क्यों नहीं लेकर आए। मैंने तुरंत जवाब दिया कि मैंने सोचा एक पागल बहुत रहेगी। वह पेपर पूरा हुआ तब तक मुझे घूरती रही। मॉडल भी अपने आप समझ आ गया था। परीक्षा देकर अपने स्कूल पहुँचे तो सबने मेरी कारस्तानी अध्यापिक को बताई उसने बड़े प्यार से मेरे गालों को खींचकर गोद में बिठा लिया।

प्रश्न १४: प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए -
(क) खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं ?
(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो ?

उत्तर:
(क) खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं ?

उत्तर: खेलकूद से हमारा शरीर स्वस्थ तथा चुस्त रहता है। इसके अलावा समूह में खेलने से सामाजिक भावना बढ़ती है। समूह में रहने तथा एकता और प्रतिस्पर्धा के गुण समझ में आते हैं। खेलकूद मनोरंजन के अलावा अब आय का भी साधन बन चुका है।

(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो ?

उत्तर: हमें खेल तथा पढ़ाई का समय निश्चित करना चाहिए। जिस प्रकार खेलकूद शरीर के लिए जरूरी है वैसे ही पढ़ाई जीवन को समझने तथा भविष्य को सुधारने के लिए जरूरी है। अतः हम इन दोनों को समय सारणी बनाकर पर्याप्त समय देंगे। इससे हमें ज्ञान तथा स्वस्थ शरीर मिलेगा तथा अभिभावकों को हमारे खेलने से आपत्ति नहीं होगी।


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